जिधर देखती हूँ
गम की परछाइयाँ है
मुहब्बत की डगर में
बस नफरत की खाइयाँ है !!
दुःख को ही बना लिया है
हमने अपना
खुशी तो लगती है
अब भयानक कोई सपना
दुःख से ही है अब
मेरा नाता
खुशी के बदले
गम ही है हमें भाता
दुखी मिलता है
जब कोई अदना
रिश्ता है कोई
लगता है अपना
गम को कहो
कैसे छोड़ दूँ !
किस्मत को भला
कैसे मोड़ दूँ!
किस्मत व गम
जब दोनों ही है पर्याय
तो फिर क्यों करुँ
मैं हाय -हाय
सुख ने तो कुछ पल ही
पकड़ा था हाथ
गम ही ने तो निभाया है
सदा मेरा साथ |
+++सविता मिश्रा 'अक्षजा' +++
गम की परछाइयाँ है
मुहब्बत की डगर में
बस नफरत की खाइयाँ है !!
दुःख को ही बना लिया है
हमने अपना
खुशी तो लगती है
अब भयानक कोई सपना
दुःख से ही है अब
मेरा नाता
खुशी के बदले
गम ही है हमें भाता
दुखी मिलता है
जब कोई अदना
रिश्ता है कोई
लगता है अपना
गम को कहो
कैसे छोड़ दूँ !
किस्मत को भला
कैसे मोड़ दूँ!
किस्मत व गम
जब दोनों ही है पर्याय
तो फिर क्यों करुँ
मैं हाय -हाय
सुख ने तो कुछ पल ही
पकड़ा था हाथ
गम ही ने तो निभाया है
सदा मेरा साथ |
+++सविता मिश्रा 'अक्षजा' +++
Achchhi rachna
जवाब देंहटाएंachha
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आचार्य भैया ......
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" ,बुधवार 13 दिसंबर2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in परआप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंसुप्रभात सविता जी, पहली बार अपको पढने का मौका मिला.. आप बहुत अच्छा लिखती है, गहराई है इस रचना में आपके अंदर की उथल-पुथल स्वत उभर आई.. आशा करती हूं जब कभी दोबारा आपको पढुं तो आपकी लेखनी के और भी नये रुपो से परिचित हो पाईं... बधाई एवं शुभकामनाएं..!
जवाब देंहटाएंशुभ दोपहर, बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया भैया आपका। सादर नमस्ते
हटाएंसुन्दर.....
जवाब देंहटाएंकोई ख्वाब लिखता है
कोई खयाल लिखता है
मेरा मन तो पागल
दर्दे हाल लिखता है
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।😊😊
हटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंबहुत ही सीधे सरल शब्दों में मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति अपनी सी लगी
जवाब देंहटाएंsundar rachna |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ---
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