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फ़रवरी 26, 2013

अड़ियल दिल

समझाने की कोशिश की बहुत दिल को
पर कम्बख्त ना समझा ना ही बहला
सुनहरे पलों को याद दिलाकर बहलाया इसे 
कोई  करता है 
प्यार बहुत ही ज्यादा तुझसे 
पर मूरख था दिल अपना ना समझा ना बहला
 रहा कोसता खुद को मेरी सुनने को कहाँ तैयार भला
उनके एक व्यंग्य  पर इतना टूट सा गया
कि रो-रोकर आँखों को भी सुजा लिया
प्यार भरी बातें  थी जितनी वे
  भूलकर  सभी
 कड़वी बात
एक उनकी दिल से लगा लिया
बहुत समझाया हमने इस नादाँ दिल को
करता है कोई प्यार बहुत ही ज्यादा तुझको
पर अड़ियल था ये दिल अपना
ना समझा 
और ना ही बहला
दिल मेरा अकड़ा था और अकड़ा ही रहा
पूर्वाग्रह में जकड़ा था और जकड़ा ही रहा |
..सविता मिश्रा

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