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मार्च 30, 2013

हुल्लड़ होली की

सड़कों पर लड़के आवारा बन घूम रहे
शराब के नशे में लड़को को ही चूम रहे ।
सब मिलकर कैसे-कैसे जुगाड़ बना रहे
तिरछी नजरों से लड़कियों को ताड़ रहे |

चीथड़े-चीथड़े हो गए हैं उनके कपड़े
मुख पर वार्निश हैं सारे के सारे चुपड़े
दूर से ही दिख रहे हैं बड़े ही डरावने
देख उन्हें लगी हैं लड़कियाँ दूर भागने ।

लावारिस का गाना गाते हुए बेसुरा
सड़क पर बेताल ही खूब झूम रहे हैं ।
खेलेय गोरी का यार बलम तरसे
गाते-इठलाते इधर-उधर घूम रहे हैं |

कोई तो लग रहे हैं बिलकुल लंगूर
रंगो से खूब निखरा है उनका नूर |
हरे, लाल, पीले रंगों से हैं सरोबार
लजा जाते रंग डाले जब कोई नार |

होली की मस्ती सब पर ऐसी छाई
पी गए सारी भांग लोग और लुगाई |
झूम-झूमकर सारे ही लोटपोट हो रहे हैं
हँस-हँसकर एक दूजे को रंग पोत रहे हैं |

कभी खड़े हो रहे हैं खूब तन कर
कभी धराशायी हुए पंगु बन कर |

होली के हुल्लड़ में बूढ़ों पर भी
देखो  जवानी 
इसबार ऐसी छाई
मस्ती में खूब झूमें अब बेदम हो पड़े हैं
कराहते हुए शाम तलक चारपाई |
चिल्ला रही है अब खूब उनकी लुगाई
तुम्हें काहे को इस बुढ़ापे में जवानी छाई ।

होली के हुल्लड़ में गम सारे ही भूल गये
बड़े-बुजुर्ग भी होली खेलन पर तूल गये |
ताल से ताल मिले ओ मेरे बबुआ तो, गाकर
जीवन के सारे दुःखों पर देखो डाल धूल गए।
होली के उमंग में उसूल भी अपने सारे भूल गये
बच्चों के रंग में वो रंगकर कूप्पा होकर फूल गए।

सविता मिश्रा 'अक्षजा'
--००---

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