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अगस्त 31, 2013

++कैसे जिए++

कभी-कभी बेगानी सी लगती हैं यह दुनिया,
कभी-कभी बड़ी जानी पहचानी सी लगती हैं|

झूठ को जब-जब जिया अपनी सी लगी,
आइना
सच का दिखाया तो बेगानी हुई|

फरेब जब करने चले बड़ी सुहानी लगी,
अच्छाई करने पर बड़ी हैरानी सी हुई|

बदनीयती की जब हमने सब ने हाथों हाथ लिया,
नियत जब साफ़ रक्खी हमने हंसी का पात्र हुई ।

धोखा देना जब तक ना आया हमको,
जीना हुआ था बहुत ही दुश्वारअपना|

जैसे ही यह गुर भी सीख लिया,
बखूबी जीना हमने सीख लिया||..... सविता मिश्रा

अगस्त 30, 2013

“”रक्षा-बंधन””

शुभ कामनाएं आप सभी को “”रक्षा-बंधन”” त्योहार की ..

कोई भूला ...कोई याद रहा .....किसी ने हमें याद किया कोई भुला गया......:)

कवच राखी
रिश्ता भाई बहन 
स्नेह बंधन| सविता मिश्रा

इसे मायावी कहे या आभासी कहे ! फेसबुक पर बहुत से अपने मिले, जो हमें बहन जैसा ही मानते हैं| बहुत वो लोग भी हैं जिन्हें हम संबोधित करतें हैं| पर कहते हैं ना ताली दोनों हाथों से बजती है, एक हाथ से तो बस चुटकी ही बजाई जा सकती है |.....
उन सभी स्नेहिल भाइयो को! जो छोटे हैं, ढेर सा स्नेह के साथ आशीष -इस बहन की तरफ से, और हमारे बड़े भाइयो को! ढेर सारी दुआओं के साथ सादर नमस्ते पहुँचे ...|

हम जानते हैं, जिन्होंने कहा राखी कहाँ हैं ? उन्हें उम्मीद होगी, कि हम राखी भेजेंगे|  हम उन्हें जरुर कहना चाहेगें कि.. माना राखी का धागा एक रिश्ते को और भी प्रगाढ़ बनाता है |  पर संभव ना हो सका उस धागे को आप तक पहुँचाना | लेकिन दिल है कि प्रगाढ़ता महसूस करता है, यह दिल मानता कब है यह तो सामने वाले के व्योहार का गुलाम बन जाता है हमेशा | और शायद तभी धोखे भी खाता है | खैर रिश्ता और धोखा दोनों एक सिक्के के दो पहलु की तरह है जो साथ साथ रहने की कसम खाए हुए है | वैसे हम इस पावन त्यौहार पर यह बकवास क्यों करने लगे | हम तो स्नेह की बात करेंगे, भाई बहन के पवित्र रिश्तें की बात करेंगे| 

इसी आभासी दुनिया के जरिये ही हम, आप सभी को भाव से राखी बाँध यह वचन लेना चाहते हैं कि आप भारत की बहनों की रक्षा में कभी भी पीछे नहीं हटेगें और ना ही भूले से भी किसी की बहन का अपमान करेगें ....|

जो दुसरे के साथ करता है, वही उसके साथ हो तब उसे अपनी गलती का अहसास होता है, यदि ऐसी गलती करने से पहले ही अहसास कर लें सब  तो कुछ तो सुधार हो ही जायेगा......|

>हम कई बार कह चुके हैं जरुरी नहीं है, खून के रिश्ते ही सब कुछ हों | कभी कभी दिल के रिश्ते भी उतने ही मजबूत और करीब होते हैं जितने खून के ...|

जहाँ तक राखी का इतिहास पढ़ा गैरों को ही इस पवित्र बंधन में बांध अपना बनाया गया ..|
.बलि-लक्ष्मी, सिकंदर की पत्नी और पुरु, कृष्ण और द्रोपदी, राखी और हुमायूँ ...|

दो लाइन अधूरी सी कहना चाहेगें ....

दिल से इतना अधिक लगा लिया ..
खून के रिश्ते से भी अधिक बना लिया |..........सविता मिश्रा....


राखी का त्यौहार एक पवित्र त्योहार है | भाई बहन के रिश्तों को और भी मजबूत करने वाला त्यौहार है | पर आज के ज़माने में भाई कि यह वाणी कि "दो पैसे की राखी लायी हो" दिल को चीर कर रक्ख देती है ....बहन भी भाई को राखी बाँध भाई के प्यार से दिए हुए उपहार को जब पैसो में तौल देती है ..कितना दुख होगा भाई को | ....................मुख से निकली वाणी दिल को कितना आघात पहुंचाती है ...किसी को क्या पता जब तक वह खुद ही भुक्त-भोगी न बने |...............यह वही समझेगा जो इस परिस्थिति से गुजर चूका होगा कभी ...........

लाख टके की हो या हो दो टके की
प्यार भरा है इसमें अनमोल भैया
कलाई पर जब यह सज जाती है
सब रिश्तों पर भारी पड़ जाती है |

भले ही भौतिकतावाद का युग है | रिश्ते बेमानी से हो गए है| पर दिल के एक कोने में कहीं  आज भी मानवता जिन्दा है| उसे झकझोरियें और अपने आप को पहचान कर रिश्तों को मान सम्मान दीजिए | वर्ना हममें और जानवरों में क्या फर्क रह जायेगा .....!  अवश्य ही सोचियेगा हमारे भाइयों  -बहनों और बच्चों ............!

बुजुर्गो को नहीं कहेंगे क्योंकि वही तो हमारी प्रेरणा है ..हमारे मार्गदर्शक है ...पथप्रदर्शक को ही रास्ता दिखाने कि मूर्खता हम बिलकुल नहीं करना चाहेंगे .............................| :)

सविता धागा प्यार का लो तुम कलाई पर अपनी बधाय
करेगी तुमरी रक्षा राखी, बहना लेगी तुमरी हर बलाय |
सविता मिश्रा
प्रेम का राग अलापा ऐसा आज
बुझ गई नफरत की देखा आग | सविता उवाच ...कुछ ऐसा राग आप सब भी छेड़िए मेरे प्यारे भारतवासियों :) :)

मौत से नहीं घबरातें थे हम अपने ही
आगोश में सुलातें थे उसे .....
पर जब से प्रिय ने प्यार से पुकारा है
हम मौत से ही डरने से लगें है| .............सविता मिश्रा



ताकीर हुई आने में हमारे
वह हमसे नाराज से रहने लगे
जा पास बैठे थे जब हम उनके
वह निगाहों से ही बस शिकवा करने लगें|...सविता मिश्रा



यूँ नाजो अदा से ना मुस्कराया करो
बेचारों पर ना कहर ढया करो
हो अप्सरा सी खुबसूरत आप
रोज हमारे लिए जमी पर उतर आया करो| ...सविता मिश्रा

आईने झूठ कभी बोला नहीं करतें
दिलको हम ही सही से टटोला नहीं करतें
चेहरे की देख बाह्य रौनक फंस जाते हैं

अन्दर कभी गिरेबान में देखा नहीं करतें| .....सविता मिश्रा


दर्द दे जब मरहम लगाओगें
अपने दिल को यूँ मनाओगे
उन्हें क्या पता है कि हाथों में तेरे
मरहम ही है या फिर नमक लगाने आये
| .....सविता मिश्रा

बस यूँ ही

१ ...हम ही मगरूर थे या ये दुनिया वाले ही गुरुर में थे
ना हमरा कोई हुआ ना ही हम किसी के हो सकें| ..सविता मिश्रा

२ ...जो दुःख दे ऐसे मोती बिखर ही जाएँ तो अच्छा ..
दुःख में हम तप कर निखर जाये तो अच्छा|...सविता मिश्रा

३ ...डूबता हुआ सूरज को देख मत समझ डूबा हमेशा के लिए
कल फिर निकलेगा फैलेगी रोशनाई चारों तरफ सविता| .....सविता मिश्रा

४.....भुजंग विष हटत नहीं कितना भी करि साधू- सत्संग
उत्तम कोई नहीं रही जात कुसंग में सब बहि जात है| ..सविता मिश्रा

५ ...चाल ऐसी ना चलो की जिन्दगी पर पड़ जाय भारी
नजदीकिया बनाने के लिए रखना होता है बात जारी| ...सविता मिश्रा

६ ...भूल जाये यह फितरत है जमाने की सविता
आज के दौर में कौन किसको याद रखता है| .....सविता मिश्रा

७ ...हद में रहतें हुए हमने ना जाने कब हद खो दी अपनी
तुम कुछ हमारे दिल में यूँ ही पैठ बनातें गये बन अपने| .....सविता मिश्रा

८...किसने कहा कि मुसाफिरों से दिल लगाया हमने
दिल है आ ही जाता कम्बक्त मानता ही कब है|... सविता मिश्रा

९....खंजर रखतें है हम भी बड़े नजाकत से
दिल जब आये किसी पर तो उतार ही देते है| ... सविता मिश्रा

१०...वाह वाह कर ना यु सर पर चढाओं
मालूम है हमें हम कोई शायर तो नहीं| ....सविता मिश्रा .....बस यूँ ही

अगस्त 29, 2013

मेरे कृष्ण कन्हैया


29 December 2013 ·

कन्हैया की अदाओं में मैं खोयी रही
कान्हा राधा के संग है क्यों रास रचाये

हम तरसे हुलसे सुनता ही नहीं है वह
राधा संग रसिया हमको है क्यों लुभाये

दिन भर तेरे भजन ही करती रही हूँ मैं
तू भी मुझको रह रह है क्यों आँख दिखाये

देता है धन उन पापियों को क्यों इतना
जो तुझको न माने न ही वह मंदिर जाये

देख सब बहुत ही अकुलाई मैं कृष्णा
तू तो पापियों का ही है साथ निभाये

इस कलयुग में क्या नहीं हो रहा है कन्हैया
फिर भी तू बैठा चैन की बंसरी है क्यों बजाये

पाप बढेगा तो तू आएगा धरती पर
मोहन तू अब तक है क्यों नहीं आये

हुई है अब तो अंधेर ओ मेरे रास रचैया
                    अब तो आ जा मेरे प्यारे कृष्ण कन्हैया ...| | सविता मिश्रा 'अक्षजा '

++नहीं समझते हम गणित ++

गिर रहा है
गिर रहा है!
रुपया !
गिर रहा हैं !

क्यों सब चीख रहे हैं
हमें तो याद हैं
रुपया तो
कुछ सालों में
४० से बढ़ ६५ हो रहा!

फिर भला कैसे  गिर रहा हैं
यह तो हर पल ऊपर उठ रहा हैं |

यह सुन
हमारे ही सामने
बैठे हुए लोग
माथा पिट लिए!

हमारी बुद्धि को भी
जरा सा कोस लिए!

पढ़ी लिखी हैं या
ठहरी
मंदबुद्धी!
हम बोले पड़े

फिर
बन
ज्ञानी
रुपया तो ज्यादा
गिनती का हो रहा हैं

फिर कैसे यह घट रहा!
चीख-चीख हम सब को
क्यों मुरख  बना रहे
अर्थशास्त्री बैठे हैं
कुछ तो कमा रहे
अपना नुकसान होता देख तो
गुंगा भी बोल पड़ता हैं
उन्हें भी बढ़ने में ही
फायदा 
नजर आ रहा
तभी तो वो कुछ भी
नहीं है बोल रहें|


तुम सब मुरख हो

चिल्ला चिल्ला फाड़ो गला
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला
और ना ही हैं उन्हें कोई गिला|
उठने को गिरना हमको समझा रहें
सभी हमें मुरख कहतें हो
वस्तुएं सब विदेशी खरीदते हो
हम तो देशी हैं देशी में ही मस्त हैं
समझ नहीं आती हमें 
यह
उठने गिरने की गणित !
रुपया हो या फिर हो इंसानियत
कम होती जा रही मालकियत |  ..सविता मिश्रा

अगस्त 20, 2013

~प्याज तो रुलाती ही थी~

गरजे सब नर-नारी कांदा हुआ इस पल दबंग
आलू को ठोकर मार तोड़ रहा अपने सम्बन्ध|

सब्जी थैला काख दबा छुपते-छुपाते घर भाग

टमाटर हुआ सस्ता प्याज में लगी है अब आग|

लगी है आग अब घर में कही नहीं दिख रहा

प्याज छोड़ मानुस शुद्ध शाकाहारी बन रहा|

सात्विक भोजन कर बुद्धि उसकी है जागी

देश पर शासन करेगा अब तो कोई वैरागी|

महंगाई से निजात दिलाये ऐसा अब कोई आये

अर्थशास्त्री फेल हुए समाजशास्त्री अब तो भाये|

मार-मार महंगाई ऐसा हमको मार गयी

रिश्ते भी है भार यह जल्दी ही समझा गयी|

त्यौहार भी बेमतलब के कुछ ऐसा मन में समाये

देख कही
प्रभु तुझसे भी मानुस  रिश्ता ना छुड़ाये|

बड़ी मुश्किल से अब पाई -पाई है जुटती

प्रभु नाम से तो भीड़ हमेशा से ही है लुटती|

सब सम्बन्ध तोड़-ताड़ मानव कही ना रोये

अपना-पन छोड़ कही खुद में ही ना खोये|

रह जाए हर हाल में अकेला ऐसा जीवन पाये

                       प्याज तो रुलाती ही थी अब जीवन उसे रुलाये|.....सविता मिश्रा

इतना घनचक्कर बना दिया इस बार ग्रह नक्षत्रो ने

अब रात में कौन भाई के घर जाकर बांधेगा (जिन्हें जाना हैं) और दुसरे इतने सुबह बच्चे कैसे तैयार हो बांधेगें ...सच में बुरे फंसे इस बार ज्यादातर लोग .....

भ्रम बहुत हो गया हैं इस बार कोई कहता हैं
२० रात 830 बजे के बाद कोई २१ को ...खैर भाइयो बहनों २१ सुबह ७ बजकर १४ मिनट तक पूर्णिमा है और वह पूरे दिन मानी जायेगी.... देश- काल- परिस्थिति के अनुसार हमें लगता हैं 21 ही सही हैं
कई लोगो के मत पढ़े सभी का मत अलग अलग ही हैं...

दोष विद्वानों का नहीं हैं इस कलयुग में इंसानों को मतिभ्रम में इन ग्रह नक्षत्रों ने डाल रक्खा हैं .....

कुछ ऐसा ही हैं इस बार आगे कुआ पीछे खाई ...
फिरहाल आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई
....सविता मिश्रा

अगस्त 08, 2013

माँ तुम यूँ शांत हो कैसे बैठी हो
गीदड़ देखो दहाड़ रहें हैं
अचानक पीछे से वार कर जवानो की
शरीर से गर्दन ही उड़ा रहें हैं
शेरो का देश हैं फिर भी मौन कैसे हो
सब ऐसे ही जब मौन धरे रहेगें तो
गीदड़ तो हम पर राज ही करेगें
एक बार बस सहनशीलता दिखाएँ तो
उसने हमारी भावनाओं का फायदा उठाया
मार भगा सकने की शक्ति हैं
फिर भी हम हाथ बांधे खड़े हैं
माँ हम क्यों ऐसे मौन पड़े हैं
शर्म से हम ऐसे क्यों गड़े है
माँ तू इशारा बस जरा कर दे
या थोड़ी छुट हमको भी दे दे
खून खौल खौल कर उफान ले रहा
कलम पकड़ बस जबान दे रहा
हाथों में अपने भी तलवार दे दो माँ
एक के बदले दस सर ना ला दू तो कहना माँ
माँ तू यूँ क्यूँ मौन पड़ी हो
कितने दरिंदो से तो अब तक लड़ी हो
अपनों के करनी पर शर्मसार हो
या कुछ नयी तरकीब सोच रही हो
अपने बच्चों के सर देख भी खड़ी हो
खून में उबाल नहीं हो रहा क्या माँ
गरजो तुम दहाड़ो तनिक तो जरा
देखो कैसे ना दुश्मन थर्रा दूम दबाये हो भाग खड़ा
...सविता मिश्रा

अगस्त 05, 2013

राजनीती क्यों सभी जगह यही हाल है आरोप प्रत्यारोप गढ़ना तो आम बात है .........
झांकते नहीं अपना गिरेबान लगाते है दूजो पर ही दाग़ हो चाहे जितना वह बेदाग़ .......
सविता मिश्रा