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सितंबर 14, 2013

====ककहरा बनाम अलजेब्रा ===











 

ककहरा था कभी सभी की जुबान
अलजेब्रा हो गयी अब अपनी आन
ककहरा के थे कभी हम सभी पुजेरी
अलजेब्रा के हो गये अब तो नशेणी |

अम्मा बाबू आज
मम्मी पापा हो गये
भैया-बहिनी को तो
ब्रदर-सिस्टर कह गये
इतना ही नहीं और भी
फैन्शी अंग्रेजी आ गयी
अब तो बच्चे मम्मी को माम
डैडी को पाप्स कहने लग गये |

आंटी झट से आंट बन गयी
अंकल तो शुक्र है अंकल ही रहे
बहन सिस्टर फिर सिस हो गयी
ब्रदर तो अचानक ही ब्रो हो गये
हिंदी भाषा भाषी को गंवार कह गये
अंग्रेजी फर्राटे से बोले तो स्मार्ट कह गये
मातृभाषा को अपनी मदरटंग कह गये
दफ्तर में भी हम अंग्रेजियत सह गये |

कैसा ये जमाना गया नया आ
अंग्रेजियत का नशा सा गया छा
उदण्ड लोग सड़को पर डोल रहे
गलती करके सॉरी बेफिक्री से बोल रहे
अंग्रेजियत का ही फूहड़पन रहे झेल
अपनी मातृभाषा को पीछे रहे ढकेल|

ककहरा को छोड़ सब अलजेब्रा के हो गये
हम भी इसी रंग में रगने को विवश हो गये
जब से हम अंग्रेजियत के रंग में रंग गये हैं
यकीन मानिये शर्म से पानी-पानी हो गये हैं || सविता मिश्रा

सितंबर 02, 2013

शबनमी बूँदें ---

रातें गुमसुम सी थीं
बातें कुछ भी ना हुई थीं
सिलसिला यही चलता रहा गर्मियों में कहाँ कुछ सुनने को मिला

जाड़े की ठिठुरन भरी रात
बागीचे की हरी चटाई पर
गुपचुप हुई कई बात
सुनगुन हमने भी सुनी
खिड़की खोलकर बाहर
देखने की हिम्मत ना हुई

सुबह होते ही खिड़की खोली
हरी हरी चटाई भीगी मिली

मैंने सोचा-
आज कितना रोई होगी चांदनी
चाँद से जब यूँ अरसे बाद मिली
महीनों के उसने ग़म बांटे होंगे
ख़ुशी से भी आँखें छलकी होंगी
चाँद नहीं भर पाया होगा अंजुली में
वह भी इस दुःख में रो ही दिया होगा

प्रिय चांदनी की आँखों का आँसू
हरी चादर ने जमीं में न गिरने दिया होगा
दोनों के प्यार भरे वार्तालाप को
कुछ यूँ ही उसने
अपनी झोली में संजोया होगा

देख शबनमी बूँदें
कुछ इस कदर मैं भी खोयी
कि चढ़ते सूरज की किरणों से ही जागी
देखा-
देखते-देखते ओस की बूँदें
आँखों से ओझल हुईं
सूरज की तपिश को
प्यार भरी ओस की बूँदें
भला कैसे सह पातीं

सूरज की लाल लाल आँखों में
समाहित जैसे वो हों गयीं |..सविता मिश्रा

सितंबर 01, 2013

हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया



हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया
कैसे लिख गये कोई महान कवि
हमें तो आज नहीं कल की फ़िक्र पड़ी
कल की छोड़िये जनाब सालो-साल की है पड़ी |

छ: सिलेंडर में साल भर कैसे निभायेंगे
साग -सब्जी, दाल-रोटी, नमक को महंगा कर
क्या कलेजे को ठंडक नहीं मिली
अब सिलेंडर-केरोसिन में भी आग लगी|

सोच रहे हैं -
बच्चों को और ज्यादा संस्कारवान बनायें
खुद के साथ-साथ उनकी भी पूजा-पाठ में रूचि बढ़ायें |

सोम-शिव, मंगल-हनुमान , बुध को बस खाए-खिलायें
बुहस्पति-बृहस्पति गुरु ,शुक्र-संतोषी,
शनि को शनि भगवान का व्रत रखवायें
रविवार को सब मिल थोड़े में ही पिकनिक मनायें |

घर बनवाने की हिम्मत न जुटे तो
कही सड़क किनारे ही कुटी छवायें
आते-जाते लोगो को इस महंगाई से परिचित करवायें
बस भोजन कम, भजन ही करते हुए जिन्दगी बितायें |

जिस तरह महंगाई की रफ़्तार बढ़ रही है
जनाब उसी तरह तनख्वाह भी तो बढ़वाइयें
हर फिक्र को धुएं में भला कैसे उड़ायें
जब खुद को ही धुयें में हम खोता पायें|....सविता मिश्रा

==== अब कुछ मजे के लिए सजा तो झेलनी ही पड़ेगी ===

आगरा में कौन सी सड़क सही हैं यदि कोई ऐसी सडक मिल जाये किसी इलाके में तो आठवा अजूबा ही होगा| कभी मेनहोल खुले कभी सिबर लाइन पड़ने को खुदी कभी टोरंटो वालो ने खोद डाली कुछ ना कुछ करके सड़क तो खस्ताहाल करनी ही करनी|
कहने को जो अच्छी लोक्लटी हैं वह बरसात में गाँवकी पगडण्डी से भी ख़राब ज्यादा हो जाती हैं| बरसात में पोखर बनी सड़को का नजारा आप यत्र-तत्र देख सकतें हैं और गड्ढों में फंसी गाड़ियो के सवार दूसरो की तरफ आस भरी निगाहें करें निरीह से नजर आ जायेगें हर कही|
गंदगी और नालाओं के पानी से लबालब सड़के बेचैन करे घर जल्दी पंहुचने केलिए| ...सविता मिश्रा