फ़ॉलोअर

जनवरी 30, 2014

**सन्नाटा ही सन्नाटा **

आस पास मचा कोलाहल
मन में फिर भी हैं सन्नाटा|

हर कहीं बहू-बेटियां चीखती
फिर भी पसरा रहता सन्नाटा|

एक किलकारी गूंजती घर आँगन
पर गर्भ में ही कर दिया सन्नाटा|

सांय- सांय की आवाज गूंजती
जहाँ कही पसरा हो सन्नाटा|

डाल ही लो आदत अब रहने की
चाहे जितना अधिक हो सन्नाटा|

सुनो ध्यान से क्या कहता
मन के अन्दर का सन्नाटा|

जीने की आदत बन ही गयी
पसरा कितना भी हो सन्नाटा||  ......
सविता मिश्रा

जनवरी 20, 2014

++कुछ यूँ ही ++

बचाव
====
ओठों को सिल लिया है अब हमने
कि कहीं जख्मों का राज खोल ना दूँ
 कर लिया है  सुनी आँखों को अब हमने
कि कहीं गम के समुन्दर का ना दीदार हो
कानो पर डाल दिए है परदे अब  हमने
कि कही किसी के व्यंग से ना आहत और हो |
++सविता मिश्रा ++

जख्म
=====
जख्म कौन सा कितना गहरा था
कैसे हिसाब बैठाये
जिस भी जख्म को याद किया
उसी को सबसे गहरा पाया |
++सविता मिश्रा
++

नाम की इज्जत
============
भस्मीभूत हो जायेगा एक दिन
यह निरीह शरीर मेरा
नहीं चाहती करें कोई बखान
पर इज्जत से नाम ले मेरा |
++सविता मिश्रा++

जनवरी 16, 2014

++क्या हम सुधरे तो जग सुधरेगा++


जैसे फूल से भरे कैक्टस दूर से बहुत खुबसूरत लगते है, पर पास जाने पर कांटे चुभने का खतरा है| बिलकुल वही दशा आजकल रिश्तों की है, दूर से ही भले ...|  कहते भी है न दूर के ढोल बड़े सुहावन लगते है,तो दूर से ही सुनने में भलाई है .... ..इस छली कपटी दुनिया में हम दो हमारे दो में जीना ही शायद सबसे अच्छा है ...| सच्चाई यही है|  फिर भी ना जाने क्यों हम झूठ के पीछे भागते है, और झूठ से चिकनी चुपड़ी बात कर मन को बहलाने की कोशिश करते है कि समाज-परिवार है अपने साथ| पर सच्चाई तो दरअसल कुछ और ही होती है ..| अपने ही लोग खुद को अच्छा साबित करते हुए, दूजे को बुरा साबित करने पर तुले होते है ...| समाज में स्थित परिवारों के मन में इतना जहर देख, सच में हतप्रभ है, और सोच रहे है क्या हम सुधरे तो जग सुधरेगा ....हम कितना भी सुधर जायें पर जग! जग सुधरने से रहा हाल फिलहाल|  .सविता मिश्रा

जनवरी 09, 2014

अतीत की दस्तक--



दरवाजे पर कितने भी
ताले लगा बंद कर दो
पर अतीत आ ही जाता है
ना जाने कैसे

दरवाजे की दस्तक
कितनी भी अनसुनी करो
पर अतीत की दस्तक
झकझोर देती है पट
एक-एक करके
यादों के जरिये
आती जाती है

मन मस्तिक पर पुनः
वही अकुलाहट, हँसी
एक क्षण में आंसू
दूसरे ही क्षण ख़ुशी
बिखेर जाती है

हमारे आसपास
देखने वाला
पागल समझता है

उसे क्या मालूम
हम अतीत के
विशाल समुन्दर में
गोते लगा रहे हैं
वर्तमान की
छिछली नदी को छोड़कर |

सविता मिश्रा 'अक्षजा'
---------------------०० ---------------------

जनवरी 04, 2014

=अजीब दास्तान् =

बड़ी अजीब दास्तान् है
कविता हमारी नाम किसी और का
देख अचम्भित हुए

थोड़ा सा दुखित हुए
क्यों लोग दुसरे की कविता को
अपनी कह देते है
क्या वह चोरी करते करते
कवि-कवियत्री बन लेते हैं
कभी कभी कुछ कहते भी नहीं बनता
पर चुपचाप रह कर सहते भी नही बनता
क्यों कर कर्म है यह अनवरत जारी
कभी कविता हमारी होती है तो कभी तुम्हारी
कविता हमारी हमारे दिल का उदगार होती है
मत चुरा कर पोस्ट करो बंधू यह निंध होती है
तुम रुधे जाओ ना कही इस कारण आगाह करते है
मत करो कापी पेस्ट बारम्बार यही निवेदन करते है
करना ही है तो नाम को मिटाए बिना ही करो
अपना नाम दे हमारे भवनाओं का अपमान मत करो
क्या कविता को चुराकर हमारे अहसासों को चुरा पाओगे
उसके अंदर छुपे हमारे जीवन के निचोड़ को समझ पाओगे
अतः करते है आप सभी से विनम्र विनती
चोरी कर कविता चोरों में नहीं करो अपनी गिनती|
...सविता मिश्रा