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अगस्त 23, 2014

दिल की सच्चाई

हे प्रभु, सुन !
कर दें अँधेरा
चारों तरफ.. .
उजाले काटते हैं / छलते है !
लगता है अब डर
उजालें से
दिखती हैं जब
अपनी ही परछाई -
छोटी से बड़ी
बड़ी से विशालकाय होती हुई.
भयभीत हो जाती हूँ !
मेरी ही परछाई मुझे डंस न ले,
ख़त्म कर दे मेरा अस्तित्व !
जब होगा अँधेरा चारों ओर
नहीं दिखेगा
आदमी को आदमी !
यहाँ तक कि हाथ को हाथ भी.
फिर तो मन की आँखें
स्वतः खुल जाएँगी !
देख सकेंगे फिर सभी...
/ और मैं भी /
दिल की सच्चाई !


सविता मिश्रा

8 टिप्‍पणियां:

अ से अनुज ने कहा…

sahi hai , andhere bhee utne hee jaroori hain jitna ujaala !!
acchee kavita

रश्मि प्रभा... ने कहा…

achhi rachna

Unknown ने कहा…

अंधेरे सचमुच मन की आखे खोल देते है....सुंदर रचना

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

बहुत बहुत आभार आपका अनुज भाई आपका

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

रश्मि प्रभा दी सादर नमस्ते ............आभार आपका दिल से

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

सीमा sis बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना....

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

कैलाश भैया सादर नमस्ते ......बहुत बहुत शुक्रिया