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सितंबर 03, 2014

अतीत की दस्तक

दरवाजे पर कितने भी
ताले लगा बंद कर दो
पर अतीत आ ही जाता है
ना जाने कैसे
दरवाजे की दस्तक
कितनी भी अनसुनी करो
पर अतीत की दस्तक
झकझोर देती है पट
एक-एक कर यादों के जरिये 
आती जाती है
मन मस्तिक पर पुनः
वही अकुलाहट, हंसी
एक क्षण में आंसू
दूसरे ही क्षण ख़ुशी
बिखेर जाती है
हमारे आसपास
देखने वाला
पागल समझता है
उसे क्या मालुम
हम अतीत के
विशाल समुन्दर में
गोते लगा रहे है
वर्तमान की
छिछली नदी को छोड़|..सविता

9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर
शायद सबके ही मन की बात कह दी आपने।

NKC ने कहा…

jee bilkul aapne sahi mahsus kiya hai, sundar rachana.

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

अभी भाई आभार आपका दिल से ..:)

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

Naveen Kr Chourasia भाई दिल से शुक्रिया

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

कैलाश भाई आभार आपका दिल से

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अतीत की यादें सुहानी होती हैं ... वर्तमान कठोर ...
उम्दा भाव ,,,,

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

madhu sis abhar dil se aaapka

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

दिगम्बर भैया सादर नमस्ते ....आभार आपका तहेदिल से!