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अक्तूबर 01, 2014

फर्क पड़ता है ~

औरतों पर भी -
बहुत फर्क पड़ता है
देश के आर्थिक,राजनीतिक
कूटनीतिक हलचलों का
और सामाजिक व्यवस्था का!

देश में हो रहे
हर उथल पुथल का
उनपर भी तो
बहुत फर्क पड़ता है!

धूप सेंकती भी वो
इसी ऊहापोह में होतीं हैं
क्या आदमी गया जो घर से
लौट आएगा शाम को
बिना किसी मार-पीट के
बिना किसी की जिल्लत सहे!

कहीं कोई दंगा ना हो जाये
फंस जाये जान आफत में
जब तक आतें नहीं घर
पति-बच्चें और रिश्तेदार
तब तक जान होती है हलक में !!

पर समझाए किसे
नहीं समझने को तैयार
समाज के ठेकेदार
कि औरतें भी सोचतीं हैं
समझ सकतीं हैं देश के हालत
  वो वीरांगना हैं 
रानी लक्ष्मी बाई सरीखी
वो रीढ़ हैं देश की !!

कैसे यह पुरुष समाज
उन्हें अलग थलग कर
अक्सर ही देखता है|
फर्क पड़ता है उन्हें भी
समाज की हर
जायज-नाजायज
गतिविधियों से !!

नहीं एडियां रगड़तीं
नहीं गपियातीं अब
गर्मियों की दोपहरी में
नहीं बस निंदा रस पान करतीं
फुर्सत में वो भी सोचतीं हैं
कैसे फांसी पर चढ़े कसाब
कैसे देश का हो दिनोंदिन उद्धार
कौन कर रहा देश की फिज़ा खराब !!

भ्रष्टाचार तो उनके घर का
बजट ही गड़बड़ा देता है
तो कैसे ना फर्क पड़े
 वो अब मुगालते में नहीं जीतीं हैं !

बल्कि हर पल, हर क्षण
देश, समाज के भी
कल्याण की सोचतीं हैं
पर नहीं समझेगा यह समाज
वह गलतफ़हमी है कि
औरतें अब भी कमजोर
और चिंतन-हीन हैं |
++सविता मिश्रा ++



1 टिप्पणी:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

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