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अक्तूबर 07, 2015

विरोध-

पुरुष खड़ा है
विरोध में
पुरुष के ही !

फैला 
रहा भरम जाल
 और
फंसी रही स्त्री।

स्त्री के आस-पास
हर अनजान पुरुष
दुश्मन होता क्यों ?
स्त्री के अपने
जाने पहचाने
पुरुष का ही !!

सोचो तो एक बार
दिख जायेंगी
सच्चाई भी
जो छुपाई गयी है
स्त्री ही स्त्री की दुश्मन
सगूफ़े की आड़ में !

हे पुरुष !
अब तो जागो
मकड़जाल में फांस
स्त्रियों को यूँ
अब तो न उलझाओ !

तुम्हारी ही बनाई
परिधि से निकल रही है
स्त्री भी अब जग रही है !!!

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

प्रेरक - शुभकामनाएं

Jyoti khare ने कहा…

प्रभावी रचना
बहुत खूब

आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
सादर

Madhulika Patel ने कहा…

बहुत अच्छा लिखती हैं आप । जी हाँ स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है । बढ़िया रचना ।