फ़ॉलोअर

जुलाई 12, 2016

~प्रतिरोध की संस्कृति~

प्रतिरोध यानि विरोध की संस्कृति| जब से जीव-मात्र ने जीवन पाया है, यह प्रवृत्ति अपने आप ही जन्मानुगत ही उसमे पायी जाती है| इंसान क्या जानवर भी विरोध की संस्कृति से बखूबी परिचित है|
खैर हम तो इंसानों की बस बात करेंगे | प्रतिरोध करना इंसानो का मुलभूत स्वभाव है |
बच्चा जन्म लेते ही प्रतिरोध करना सीख जाता है| उसके मन मुताबिक चीज न हो तो वह रोकर अपना प्रतिरोध दर्ज कराता है | जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वह क्रोध कर ,रोकर ,चीख-चिल्लाकर प्रतिरोध करता है |
प्रतिरोध ऐसी ताकत है जिससे हम सामने वाले को उसकी गलती का अहसास दिला सकते है | पर इसका उग्र रूप बहुत ही घातक होता है | उग्रता में हम अपनी सीमा भूल जाते है | सीमा का उलंघन होते ही हमारा दिमाक भी प्रतिकार करता है, पर हम क्रोध में अंधे हो चुके होते है | भावहीन हो जातें हैं, जिससे दिमाक का वह प्रतिकार हम महसूस ही नहीं पाते|
शान्तिमय प्रतिरोध में बहुत ताकत है | पर यह एक होम्योपैथी इलाज की तरह है ,जो समय लेता है, सामने वाले को उसकी गलती का अहसास कराने के लिए | पर यह समय ही तो हैं जो हममें से किसी के पास होता कहाँ है | हमारी जल्दी सुनी जाये अतः हम आक्रामक प्रतिरोध की संस्कृति अपनाते है, जो एलोपैथी जैसा काम करती है| पर लोगों की नजर में हमें  उद्दण्ड भी बना देती है |
आजकल आदमी की सहनशक्ति ख़त्म सी हो रही है| अतः वह आक्रामक हो प्रतिकार करता है | हर गली -मोहल्ले में ,हर बात पर | उसका यह आक्रामक प्रतिकार, प्रतिरोध की संस्कृति के प्रतिकूल हो जाता है |जिससे वह असर नहीं होता जो होना चाहिए |
सड़क पर प्रतिरोध करते लोग आम जन से भिड़ते ही रहते है यह आम बात है | सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा कर प्रतिरोध दर्ज करना, कौन सी बहादुरी का काम है | संसद घेरना ,चीखना -चिल्लाना ,आगजनी , मार-पीट करना ये सब तो स्वस्थ प्रतिरोध की संस्कृति नहीं है,फिर भी ज्यादातर लोग ऐसे ही कर रहें हैं |
'संयत रहिये तो ही स्वस्थ रहेंगे ' प्रतिरोध करने वालों को यह युक्ति अपनानी चाहिए |
पांच -छः साल से ये वेलेंटाइन डे क्यों इतना महत्व पा रहा है, क्योंकि हम इसका जबरदस्त विरोध कर रहें है| हम इसे दबाने में प्रतिरोध कर रहें तो इसके समर्थक इसे उभारने में प्रतिकार | दोनों ही प्रतिकार अमर्यादित है, जिसके कारण फायदा के बजाय नुकसान हो रहा हैं | दोनों ही तरफ से प्रतिरोध की संस्कृति अपनाने के कारण आज सभी बच्चे -बूढ़े नर- नारी के जुबान पर यह डे हैं | वर्ना कौन जानता था कि ये किस चिड़िया का नाम है | अमर्यादित डे को हर युवा अपनाकर भारतीय संस्कृति को कुटिलता से कुचल रहा है| इसका प्रतिरोध करना हम भारतीयों की ही जिम्मेदारी है | पर सकारात्मक रूप से, वर्ना यह लाइलाज बीमारी की तरह फैलती जाएगी | फिर भविष्य को देने के लिय हमारे पास अपनी संस्कृति बचेगी ही नहीं |
प्रतिरोध की संस्कृति जो हमारी ताकत है ,उसे हमारी कमजोरी बनाकर फ़िल्मवाले भी इस्तेमाल कर रहे है, और हम अन्जान होने के कारण इस्तेमाल हो रहें है | कोई न कोई विवादित क्षण मूवी में डालो, जनता प्रतिकार कर अपने आप प्रचार कर देंगी| उनकी इस सोच पर हमें सोचना होगा कहीं हम महज कठपुतली तो नहीं बन रहें |
भीड़ में प्रतिरोध करते किसी भी व्यक्ति से यदि सवाल किया जायें कि आप प्रतिरोध किस चीज का कर रहें है? तो शायद ही २० में से आठ ही यह बता पाएँ कि मूल कारण क्या है, जिसका हम प्रतिरोध कर रहें हैं| बस देखा-देखी पाप ,देखा-देखी पुण्य की राह पर चल पड़ते है अंधे -बहरे-गूंगे बनकर | जो अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिरोध की संस्कृति को क्षति पहुंचाता है |
अब इसका मतलब यह तो कदापि नहीं कि आपके घर के सामने कोई लाकर ठीक दरवाज़े पर गाड़ी खड़ी कर दें, पर आप दबते-दबाते किसी तरह निकल जाये प्रतिकार करें ही न | या आपके दरवाजे पर कोई पान थूंक जाये, पर आप मूक दर्शक बने रहें | प्रतिकार करना हमेशा मुलभूत अधिकार है | बस उसका दायरा कहाँ, कब शुरू होता है और कहाँ, कैसे ख़त्म यह समझने की बात है |
आज की युवा पीढ़ी ना जाने किस ओर भाग रहीं है | रोकने-टोंकने पर इसी ' प्रतिरोध ' को हथियार बना लेती है | न जाने कैसी आजादी चाहिए ? कोई उनसे कहें तो कि बेटा आजाद तो तुम जन्म से पहले भी न थे, जन्म के बाद भी नहीं हो | कोख में माँ ने तुम्हारी एक सीमा तय कर रखी थी और शैशवावस्था में भी | हाँ प्रतिकार होता था पर वो प्रतिकार सही दिशा में है या नहीं यह निश्चित माँ-बाप ही करते थे |
आज वैश्विक व्यवसायिक हवा में झूलते जिस झूले में बैठ लोग, आसमान का सफ़र करना अपना अधिकार बता रहें है| वह झूला दरअसल एक कमजोर डोरी से बना है, जो उनके थोड़ा सा ऊपर जाते ही टूट जाता है |और वो फिर इसी धरातल पर आ गिरते है, जो उनकी अपनी भारतीय संस्कृति है | आज जो भारतीय संस्कृति को हेय दृष्टि से देख प्रतिरोध कर रहे है , कल इसी की गोद में आराम करना पसंद करेंगे| जैसे बच्चा कितना भी उछल-कूद, शरारत कर ले पर अंततः माँ की गोद में सर रखकर ही सुकून पाता है | क्लब में थिरकना ,शराब -अफ़ीम-गांजा का सेवन करना, बेहूदे कपड़े पहनना ये सब अपनाने के लिए सभी छटपटाते है| हर चमकती हुई चीज को सोना समझ युवा द्रिगभ्रमित हो अपना लेता है, पर कुछ समय पश्चात् मोह भंग होतें ही  इनसे बाहर आना चाहतें है| अँधेरी गुफा में जाने का रास्ता तो बहुत सरल हैं परन्तु निकलने का उतना ही कठिन|
हरें -भरें फल -फूल से लदें राजनीतिक वृक्ष पर भी लोग प्रतिरोध कर- कर के चढ़े जा रहे है |  चढ़ते ही संयमित प्रतिरोध किस चिड़िया का नाम है भूल,असंयमित हो मशगूल हो जातें  हैं, खूबसूरत फल-फूल अपनी झोली में डालने में |
गलती उनकी कहाँ ,गलती तो हमारी है| जो हर उल्टा-सीधा ढंग से प्रतिरोध करने वाले को हम युग पुरुष समझते है| क्योकि हमारे अंतस के कोने में बैठे प्रतिरोध के राक्षस को वह आवाज दे रहा है | विरोध का राक्षस तो अपने भी अंतस में तांडव कर रहा है, पर हमें  अपनी सीमा पता है उस सीमा से बाहर निकल उदण्ड रूप से प्रतिरोध करना हमारी मर्यादा के खिलाफ है |

अब तो प्रतिरोध भी शायद प्रतिकार करने लागा है कि..
मुझे वीभत्स मत बनाओं
संयत रूप में ढ़ल जाओं
बदल डरावना रूप अपना
भारतीयता को तुम अपनावों|
एक गीला कपड़ा आग के पास भी लाओं, तो वो तब तक नहीं जलता जब तक गीला रहता है | ज्यादा समय सानिध्य में रखने पर सूखते ही झट आग पकड़ लेता है | उस समय पानी डालकर बुझाना हमारी जिम्मेदारी हैं | आज यदि हम इस ज़िम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से नहीं निभाते तो कल सब कुछ जलकर ख़ाक हो जाएगा | फिर तो आग के ढेर पर बैठकर रोने के सिवा कुछ नहीं मिलेगा |
प्रतिरोध की संस्कृति के जरिये हमें भारतीय संस्कृति को बचाने का प्रयास करना चाहिये | हाँ एक दायरे में हो यह नहीं की एक मर्यादा बनाये रखने के लिए, दूसरी मर्यादा तोड़ी जायें |
' प्रतिरोध की संस्कृति ' को संस्कृति के ही रूप में अपनायें , तो वह दिन दूर नहीं जब सभी इस संस्कृति के पक्षधर होंगे | आखिर मर्यादित रहना हमारी संस्कृति है और मर्यादा में रहकर विरोध करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार |
चीख-चीख कर, कर रहा जो तू प्रतिकार
उदण्ड मवाली कह, आवाज़ दबा देंगी सरकार
अत्याचार एवं वैश्विकता का, मर्यादा में रह कर विरोध
कन्धें से कन्धा मिला तब, चलने वालों की होगीं भरमार | सविता मिश्रा

कोई टिप्पणी नहीं: