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फ़रवरी 20, 2017

अभिशाप-


दहेजवा क बात
हम का करी ओ भईया
दहेजवा से अछूता
न रहल बाटय कोई घरवा |

हर लड़की क बाप
 देथिन ई दहेजवा
न जाने कवोने जमाने से
चला आवत बा ई दहेजवा |

देहे रहलेंन
राजा जनक भी
खूब ढेर क दहेजवा
बनि गईल बाटय
समाज क अभिशपवा
अब ता ई दहेजवा |

हालत ऐसन भईल बाटय कि
जबरन लेथिन
 ई दहेजवा
लड़कियन के जलाय 

मार डालथिन
मिलय न अगर ई दहेजवा | सविता

घमंड ना करना --

करना है तो कर्म करना
घमंड कभी न करना
आया है मुट्ठी बाँधकर
खुले हाथ ही है जाना |

फर्श से अर्श पर चढ़ा है
तू मेहनत से जैसे
विनम्रता से रख उसको
कायम तू कुछ ऐसे
क्यूँ घमंड में चूर होकर
करता है अपमान किसी का
पाप की हांड़ी को क्यों भरना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |

वरना देर नहीं लगती है
अर्श से फर्श पर आने में
राजा कब रंक बन जाए
बना रह जाए कब वह राजा
उस विधाता के पास लिखा है
इसका लेखा-जोखा ताज़ा-ताज़ा |
किसी की नजरों में नहीं चढ़ना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |

तेरे कर्म ही तो करते हैं
ये सब कुछ निर्धारित
चल अब सबसे ही
गले मिल तू त्वरित
प्यार से बाँहों की माला
गले में उसके डालना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |

मान देकर ही दूजे को
इस जग को तू जीत लेगा
अपमान किया किसी का तो
बद्दुआ ही तुझको मिलेगा
कभी किसी का दिल नहीं दुखाना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |

सम्मान देकर तू और भी
ज्यादा निखर जायेगा
किस्मत चमकेगी और
तेरा परलोक भी सुधर जायेगा
उड़ती हुई पतंग की डोर
कसकर हाथ में पकड़े रहना
करना है तो कर्म करना
घमंड कभी न करना ||...

सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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फ़रवरी 13, 2017

गर्व होना चाहिए-


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नारी क्यों ढाल बने नर की
उसे तो भाल बनना चाहिए

उसको ढाल बनाये जो नर
उसका नहीं इस्तकबाल होना चाहिए

पुरुषो की अहमी सोच को
हमेशा किनारे रखना चाहिए

नर दिखाए जो तेवर तो
नहीं निराश होना चाहिए

दुर्गा चंडी नारी का ही रूप है
उसे यह अहसास होना चाहिए

दरिंदो के मन में हो खौफ पैदा
ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिए

कदम से कदम मिला चल रही
दंभ नहीं स्वयं पर गर्व होना चाहिए

 क्यों हमेशा नारी ही ढाल बने नर की
इन्सां रूप में उसका भी एहतराम होना चाहिए | सविता मिश्रा

फ़रवरी 12, 2017

हायकु

अभाव नहीं
सब नियंत्रण में
घटना घटी |....सविता


प्रेम का भाव
समझ के पराये
हुए अपने |..सविता मिश्रा

नियत साफ़
आशीष फलता है
बड़ों का तभी |...सविता मिश्रा

यादें बिखरी
कभी हंसी या गम
जब भी आई |  .
..सविता मिश्रा


रोना रुलाना
कंधे पड़ते कम
रिश्तों का मोह |
...सविता मिश्रा


रुलाता रिश्ता
कंधे छूटते राह
प्रगति ऐसी |
...सविता मिश्रा

तुम्हारे बिन-

तुम्हारे बिन-

सुनो !
तुम्हारे बलिष्ठ
सीने पर
सिर रखकर
जो सुकून मिलता था
वह इन मुलायम सी
तकियों में कहाँ
तुम्हारे बिन!

सुनो !
तुम्हारे बलशाली
बाहों का हार
गले में पड़कर
फूल सा लगता था
पर देखो न
यह हल्का-फुल्कासुगन्धित
गुलाबों का हार भी
बड़ा भारी सा
लग रहा है
आज मुझे
तुम्हारे बिन!

सुनो !
तुम्हारी वो
कठोर भाषा
और
सख्त लहजे में
बोल
ने का अंदाज भी
बांसुरी से बजाते थे
कानो में मेरे

आजकल
बच्चों की भी
प्यारी सी
तोतली भाषा
वो रस न
हीं घोल पाते
मेरे कानों मेंतुम्हारी तरह
तुम्हारे बिन!

सुनो !
सुन रहे हो न
याद आती बहुत
आजकल तुम्हारी
सपने में भी तुम
जागती आँखों में भी
तुम ही तुम !

सुन रहे हो न
आजकल मैं
आईने के सामने
होकर खड़ी
निहारती हूँ
खुद में ही
तुमको
तुम्हारे बिन!!! सविता मिश्रा