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दिसंबर 23, 2012

भय बिन होए ना प्रीति-





कितनी बार बुलाया हमने प्रभु तुम ना आए
कितनों ने हम पर सितम ढाएं पर तुम ना आए |

हम चिखते-चिल्लाते रहें पर प्रभु तुम ना आए
कैसे द्रोपदी की एक पुकार पर तुम दौड़े आए थे |

इस युग में क्या तुम भी डर गए जो ना आए
हर युग में स्त्री का अस्तित्व हनन क्यों करवाए |

युग दर युग नारी पर अत्याचार क्यों बढ़ता जाता है
पहले था चिरहरण अब वहशी दरिंदा बन जाता है |

उस युग में बस चिरहरण कर लाज दुश्सासन ने लुटा
इस कलयुग में तो प्रभु देखो मानव गिद्ध ही बन बैठा |

प्रभु देखो हमको वह नोंच-खसोट रहा
हम बहुत चीखे-चिल्लाएं पर तू बैठा ही रहा |

हमारी यह दशा देख भी तुम क्यों ना अकुलाए
क्यों नहीं दुष्टों पर अपना सुदर्शन चक्र चलाए |

लाज लुटती रही हमारी, मानव बहशी हो गया
देखों ना प्रभु हमारी इज्जत को तार-तार कर गया |

अब तो जब तक सांस रहेगी मेरी तुझको ही कोसेंगे
बेटी क्यों बनाया हमको यही बात बस तुझसे पूछेंगे |

बनाया तो बनाया पर ऐसे कमजोर सी क्यों बनाया
आठ-दस को मार गिरायें ऐसी दुर्गा क्यों नहीं बनाया |

जब तुझे मालुम था तू भी डरकर रक्षार्थ नहीं आएगा
हमें शक्ति देता जिससे हम अपनी रक्षा आप कर पाते |

वह नारी बहुत किस्मत वाली है जिन पर दरिंदो की नजर नहीं पड़ती
कुछ ऐसी किस्मत सभी को देता तो बता प्रभु भला तेरा क्या जाता |

तू आ नहीं सकता था इस कलयुग में, डर गया था मालूम है हमें
बस तू हमें ही शक्ति दें दे यही प्रार्थना करतें हैं तुझसे तन-मन से |

हमारी शक्ति देख फिर तू हम क्या-क्या नहीं करते
गन्दी नजर से देखने वालों की आँख निकाल लेते |

गलत हरकत पर हाथ काटकर उसका मुहं काला करते
कोई नजर उठा ना देखता हमको फिर हम यूँ शान से चलते |

अदब से झुक जाती नजरें फिर तो नारी के सम्मान में
भय बिन प्रीति नहीं होती है प्रभु आजकल इस जहां में |...सविता मिश्रा

दिसंबर 16, 2012

~ अपने और गैर ~


तुम थे कभी अपने अब गैर क्यों हो गये,
वे थे कभी गैर अब अपने क्यों हो गये |
यह बात है मुझे कोसती,
मैं हूँ कि जबाब नहीं दे पाती |
जब मेरे पास दौलत थी सभी थे अपने,
आज क्यों हो गये सब के सब बेगाने |
आज वही लोग जिन्हें समझती थी मैं गैर,
सहारा दे रहे है मुझे दे रहे है आदर |
मुझे दुःख है कि मैं इंसान होकर भी,
इंसान को ना समझ सकी |

गैरों को अपना समझ कर अपना न सकी,
अपनों को गैर समझ कर भूला न सकी |
गैर है कि मेरे इतने हमदर्द हो गये ,
हम है कि इतने बेदर्द हो गये |
गैरों की जमात में खड़े अपनों को अपना ना सकी,
अपनों की खाल में छुपे हुए गैरों को ठुकरा न सकी |


सविता मिश्रा 

<<<वह जवान हो गया>>>

डर के मारे बंधती थी उसकी घिग्घी 
 हमारे सामने जुबान नहीं थी खुलती 
 सामने तो खड़े होने का साहस भी ना था 
 नजरें मिलाना तो बहुत दूर की बात थी 
 पर लगता है अब बहुत कुछ बदल गया 
 या हम बूढ़े हो गये या फिर वह जवान हो गया |
 ++ सविता मिश्रा ++

दिसंबर 12, 2012

+फायकू +


१-उधार ले ले जीतें
अब और क्या
तुम्हारें लिए

२-बनिया खूब चिल्ला पड़ा
चुकता किया उधार
तुम्हारें लिए

३-तुम हमारी धड़कन बनो
हम दिल बसे
तुम्हारें लिए

४-मरने के बाद भी
पीछा ना छोडू
तुम्हारें लिए

५-घर को खुबसूरत किया
चाहत पूरी की
तुम्हारें लिए

६-दर्दे इश्क क्या है
पुछु आशिक से
तुम्हारें लिए

७-फूल नारियल चढ़ा आई
मिन्नतें खूब की
तुम्हारें लिए

८-सभ्य थे हम कभी
असभ्य बन गये
तुम्हारें लिए

९-लक्ष्मण रेखा की पार
रक्षार्थ ही तुम्हारें
तुम्हारें लिए

१०-तन-मन- धन चाहिए
तुम्हारें ही साथ
तुम्हारें लिए

११-करती दुनिया तुम्हारी बुराई
भृकुटी तानी हमने
तुम्हारें लिए

१२-क्रोध की अति नहीं
शांत रहती बस
तुम्हारें लिए

१३-भूख लगी फिर भी
इंतजार तेरा ही
तुम्हारें लिए

१४-चोर चोर मौसेरे भाई
पकड़ें ही गये
तुम्हारें लिए

१५-तुम जो चाहों सब
बने हम बस
तुम्हारें लिए

++सविता मिश्रा ++

~ ~फायकू ~~


१-पोथी पढ़ी जग मुआ
हम पढ़े बस
तुम्हारें लिए

२-क्रिकेट के पीछे पागल
सब कुछ करे
तुम्हारें लिए

३-भीख मांग गुजारा करतें
ठौर करें हम
तुम्हारें लिए

४-यूँ दर-दर भटक
जियें सदा हम
तुम्हारें लिए

५-अपने प्रिय से अलग
रहतें है हम
तुम्हारें लिए

६-हर कर्म करें हम
जिए मरे भी
तुम्हारें लिए

७-डर-डर जियें हम
सब कुछ सहे
तुम्हारें लिए

८-उजाला तुम ले लो
अँधेरा हम बने
तुम्हारें लिए


९-तुम्हें हर जगह खोजता
चहूओर भटकता रहा
तुम्हारें लिए

१०-समस्या हर कही है
सुलझा लेंगे कुछ
तुम्हारें लिए

११-खुसनसीब थे हम भी
साथ जो हुए
तुम्हारें लिए

१२-जब जब रोयें हम
याद आई तेरी
तुम्हारें लिए


१३-भूख लगी फिर भी
खाएं नहीं हम
तुम्हारें लिए

१४-कुछ ख़ास कर जाऊ
पहचान हो हमारी
तुम्हारें लिए

१५-सोचती रही दिन रात
कुछ आयें ख्याल
तुम्हारें लिए

१६-तुम मेरे गिरधर हम
राधा बन जाएँ
तुम्हारें लिए

१७-कुछ ऐसा ही हो जाएँ
सच ही जीतें
तुम्हारें लिए

१८-फूल बन महके हम
खुसबू बिखेरे चहुतरफ
तुम्हारें लिए

१९-तुम सा ना बने
तुम में समायें
तुम्हारें लिए

२०-हायकू हुआ पुराना अब
फायकू मनभावन लगा
तुम्हारें लिए

सविता मिश्रा

~फायकू~


1-कंप्यूटर किबोर्ड बनते रहो
स्कीम आई कई
तुम्हारें लिए ..सविता

2-तुम भले भूले हमको
हम जीतें रहे
तुम्हारें लिए..सविता

3-तुमको ख़्वाबो में देखते
बातें भी करतें

तुम्हारें लिए..सविता

4-मत समझना पागल है
याद में तेरी
तुम्हारें लिए..सविता

5-यदि मुस्करा रहें है
हर मुस्कराहट नहीं
तुम्हारें लिए..सविता

6-नजर नजर का फेर
हर नजर नहीं
तुम्हारें लिए..सविता


7-समुन्दर में डूबना था
चुल्लूभर में डूबे
तुम्हारें लिए..सविता

8-सब शराब पीकें बहकें
बहकें बिना पियें
तुम्हारें लिए..savita

9-तमाशाबिन हो गयी दुनिया
मुस्कराती रही बस
तुम्हारें लिए..सविता


१०-फर्ज था जो निभाया
आगे भी निभाएंगे
तुम्हारें लिए..सविता

सविता मिश्रा
फायकू
++++++++१-इरादा अपना बता तो
जिन्दगी छोड़ दे
तुम्हारें लिए..सविता

२-बेदर्दो की दुनिया में
दर्द लिए फिरतें
तुम्हारें लिए..सविता


३-तुम मेरे इंद्र हो
हम सूरज बने
तुम्हारें लिए

४-दूध फाटे दही बने
लस्सी की हमने
तुम्हारें लिए

५-वह बोले हमेशा कड़वा
शहद घोल बताएं
तुम्हारें लिए


६-सब के सब गिरगिट
रंग बदलते जाये
तुम्हारें लिए

७-राम नाम खूबय जपा
नहीं समझ आये
तुम्हारें लिए

८-बस एक दीपक से
अँधियारा मिटाने चले
तुम्हारें लिए


९-चोट तू खाया दर्द
हमको ही हुआ
तुम्हारें लिए

१०-गम के समुन्दर से
मोती चुने हम
तुम्हारें लिए

११-खेत खलिहान फैली हरयाली
यादों में तेरी
तुम्हारें लिए


१२-ठानते कैसे ना हम
सम्मान जुड़ा था
तुम्हारें लिए

१३-मुश्किल भले ही हो
रखना सम्मान था
तुम्हारें लिए

१४-जीतें थे कभी हम
मर भी जाये
तुम्हारें लिए


१५-जंगलराज मचा हाहाकार चौतरफा
हम करेंगे कुछ
तुम्हारें लिए

१६-आँखों में ख्वाब सजाएँ है
कोई अपना आयें
तुम्हारें लिए

१७-राहों पर फूल बिछा दे
घरौंदा प्यारा बसा
तुम्हारें लिए


१८- सूरज भले ही डूबा
हम नहीं डूबे
तुम्हारें लिए

१९-भागते शोहरत के पीछे
हम अडिग खड़े
तुम्हारे लिए

२० -बिछड़कर नहीं जिन्दा रहती
जिन्दा है हम
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

~फायकू ~

फायकू की गुरु बनी
गुस्ताखी ना हो
तुम्हारें लिए ........

सूरज तुम कहते हमको
डूबे निकले फिर
तुम्हारें लिए

क्या करे दिल का
धड़कता है बस
तुम्हारें लिए ...सविता मिश्रा

चाहा था सीखना आपसे
सोचा सीख लेंगे
तुम्हारे लिए

भला होता किसी का
कर देंगें हम
तुम्हारें लिए

 पी लेंगे जख्मो दर्द
सह लेगें सितम
तुम्हारें लिए

जिंदगी की जंग हम
लड़ेगे मिलकर संग
तुम्हारें लिए

जूनून हो गया सवार
लिखू कुछ ख़ास
तुम्हारें लिए

जुड़ा मान सम्मान आपका
ठानें इसीलिए लिखेगें
तुम्हारें लिए

तुम अगर चले गए
नहीं सोचना आउंगी
तुम्हारें लिए

 छेड़ेगें मनचले तुम्हे सरेआम
खूबसूरती ढाकों जरा
तुम्हारें किये

बेपर्दा ना हो चलो
लफंगे हर कही
तुम्हारें लिए

चाहत थी देखो तुम
सोलह श्रंगार किया
तुम्हारें लिए

कही मुख ना मोड़ना
दुनिया छोड़ आई
तुम्हारें लिए

मौत का रास्ता रोका
ढाल बनी बस
तुम्हारें लिए

महफ़िल सारी तुम सजाओं
खुशियाँ हम बटोरें
तुम्हारें लिए

 रिश्तें नातें सब भूलू
याद बस तुम्हारीं
तुम्हारें लिए

मौत को दिया मात
जिन्दगी की आस
तुम्हारें लिए

 बहुत लड़ी मौत से
नहीं कोई पछतावा
तुम्हारें लिए

जिंदगी की छाव में
तुम्हारी बाहों में
तुम्हारें लिए

प्यारी आवाज तुम दो
हम ना आये
तुम्हारें लिए

मन से पुकारों तो
खड़े मिलेगें हम
तुम्हारें लिए

 मौत से लड़ते रहे
जिंदगी की चाह
तुम्हारें लिए

काम करो हमारे लिए
अपयश मिलता है
तुम्हारें लिए

नेता डाक्टर का नाम
पुलिस ही बदनाम
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

दिसंबर 01, 2012

बेवकूफ पति अपनी पत्नी को घर की मुर्गी साग बराबर समझतें है और दुखी रहतें और उसे भी दुःख देते है|
तथा समझदार पति अपनी पत्नी को हूर की परी समझतें है खुद भी खुश रहतें है और उसे भी खुशियाँ ढेर सारी देतें है |...सविता मिश्रा

~घडियाली आंसू~ +वादा +


चिताओं पर आंसू बहाने की फुर्सत किसे है
बेवफ़ा इश्क क्या कम है इन आंसुओ के लिए,
लुटाना है तो लुटाओं किसी अपने के जनाजें पर
वहाँ पर घडियाली आंसू क्यों हो बहाने के लिए|..सविता मिश्रा

                                                

चलो आज कुछ ना कुछ सभी बोल दो
सालों से मन में पड़ी गिरह खोल दो
वादा है हमारा बुरा ना मानेगें हम
शिकायत आपकी दूर करने की कोशिश करेगें हम|
..सविता मिश्रा
...
तारीफ़ करने से जो डरतें है वही सबसे ज्यादा प्यार करतें है
वाकिफ है हम इस गुप्तगू से क्योकि हम भी तो यही करतें है |...सविता

नवंबर 28, 2012

==कुछ बने और सपने साकार करें ==

Add caption
हमारे बच्चे ....सुमित ...बड़ा बेटा अमित ...बिटिया हिमाद्री ...की तस्वीर है
बचपन से देखा था कुछ सपना
हुआ नहीं कुछ भी तो अपना
माता-पिता ने साथ भेजा जिसके
बिना कुछ पूछे चल दिए साथ उसके
जब पँहुचे हम अपने ससुराल
घबराये  देख वहां का माहौल
सोचा कैसे निभाऊँगी इन सबके साथ
पर धीरे-धीरे सब कुछ सरल हुआ
गैरो से कुछ इतना आत्मीय हुआ
कि अब तो मायका भी सपना हुआ|

घर की जिम्मेदारी का बोझ
संभाला बिना किसी खीझ
घर का काम शुरू कर देती
सूरज उगते ही आँखे मीच|
सास-ससुर का ख्याल रखती
माता-पिता से बढ़कर मान करती
जेठ-देवर को भी माना
भाई से बढ़कर ही जाना|
झाड़ू-बर्तन-कपड़े सब करती
घर की देखभाल में दिन भर रहती
उफ़ भी ना किया कभी
कष्ट भी आये जब कभी|
पति-बच्चे स्वस्थ एवं सुखी रहे
खुद सारे दुःख सह रहे
तनिक भी ना खरोंच आये
हम सदैव ढाल बन खड़े हुये|
सारे पुराने सपने तो अब हवा हुए
अब तो बस एक ही सपना है |
बच्चे बस अच्छे इंसान बने
भविष्य की नयी राह चुने
सपना तो हमारा अब उनसे ही है
कुछ बने और सपने साकार करें||
||सविता मिश्रा ||

नवंबर 26, 2012

संस्कार-

पुरानी पीढ़ी ने हमें कंधो पर बैठाया
सच्चे-बुरे का सभी फर्क समझाया|
पर हम तो भागती दुनिया के पीछे ही भागे
कब अपने बच्चों को कंधो पर बैठा बढ़े आगे|

उन में संस्कार नहीं है अब चीख -चिल्ला रहें हैं
क्या हम अपनी पीढ़ी से मिले संस्कार
सच्ची में अपनी नयी पीढ़ी को दे पा रहें हैं ?

फिर भी गनीमत है
वह अभी भी हमारी कद्र करते हैं
शायद कन्धा नहीं, हमारी ऊँगली
पकड़कर चलने का मान करते हैं |

पर आज की पीढ़ी तो
कुछ इस तरह मार्डन हो गयी है
कन्धा -उंगली दोनों छोड़
नवजात शिशु को
टोकरी में रखकर चल रही हैं |

क्या टोकरी-ट्राली में पलने वाले वे शिशु
हमारे संस्कार पा रहे हैं ?
अपनी माँ-बाप के छुवन के अहसास को भी
सही से महसूस नहीं वो कर पा रहे हैं |

आगे चलकर यह शिकायत ना करना कभी
अपनी अगली पीढ़ी से आप सभी
कि तुम संस्कार विहीन और
मार्डन हुए जा रहे हों |

जब वह तुम्हें ट्राली में बैठाकर कहीं घूमाएँ
गनीमत समझना की निर्जन रास्ते पर
तुन्हें वह लावारिस नहीं छोड़ आ रहें हैं |

छोड़ भी आयें
यदि वृद्धाश्रमों में तो भी
आश्चर्य नहीं करना तनिक भी
क्योंकि
तुम भी तो कमाने की होड़ में
छोड़ जाते थे आया की गोद में |....सविता मिश्रा

नवंबर 25, 2012

          फायकु         =======

१.चाहत है हमारी लेखनी
गीत बन बहू
तुम्हारें लिए


२.नहाना धोना भूल गयी
इतंजार बस तेरा
तुम्हारें लिए


३.उकता गयी जिन्दंगी से
जीतीं फिर भी
तुम्हारें लिए


४.रात दिन जागें हम
भर नैन नीर
तुम्हारें लिए


५.करना चाहा था बहुत
कर ना पाए
तुम्हारें लिए


६.गद्दारों को मार गिराएँ
ये मेरे वतन
तुम्हारें लिए


7.नारियों को दोषी ठहरातें
चुप है हम
तुम्हारें लिए


8.जीने को है तैयार
दर्द में सही
तुम्हारें लिए

9.बोलने को कहतें है
बोलें नहीं बस
तुम्हारें लिए


10.गहन सोच में थे
कुछ कर गुजरेगें
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

नवंबर 21, 2012

~ हम रहे न हम ~

           चित भी उसकी पट भी उसकी
हमारा क्या था कुछ भी तो नहीं
वह जिधर कहता उधर चल पड़ते
जिधर कहता उधर ही बैठते
कठपुतली से बन गये थे

उसका हर इशारा ही शिरोधार्य था
अपना क्या था कुछ भी तो नहीं !
अस्तित्व भी अपना ना था
तन-मन सब तो उसका ही हो गया था
उसके बगैर खुद को बेजान पाते थे
उसकी आवाज भी सुन ले
तो जान में जान आती थी

वह भी जानता था हमारी कमजोरी
पर अहसान उसका कि
उसने फायदा ना उठाया

अपने अस्तित्व में भी उसने
हमारा ही होना बताया | ...सविता मिश्रा

= कुछ अच्छा हुआ तो सही =


बाहरी राक्षस का अंत| ना जाने क्यों यह सोच सुखद अनुभूति हुयी कि उसके हाथों मरने वाले लोगों की आत्मा को शांति पहुंची| पर फिर भी दिल की गहराइयों में एक हलचल मची है ,कि आखिर हम खुश है या बस एक खुश होने का महज दिखावा है मात्र, क्योकि अभी तो बहुत सारेअपने ही देश के अन्दर बैठे है |अपनी ही जननी (भारत माता) को नोंच खसोंट रहे हैं |उनका अंत हो तो शायद ख़ुशी की पराकाष्ठा हो| परन्तु ऐसा तो होने से रहा अतः एक मच्छर के मरने से ही खुश होले, खटमलों को खून चूसने दे उनका भी अंत होगा ही कभी ना कभी इस आशा में ....सविता मिश्रा

मुंबई में 26/11 के हमलों के दोषी अजमल कसाब को बुधवार की सुबह पुणे की यरवडा जेल में फांसी दे दी गई है. इससे पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनकी दया याचिका ख़ारिज कर दी थी

नवंबर 20, 2012

~ निःसंतान भारत अपना ~

 
अरबों की जनसंख्या है फिर भी
भारत है निःसंतान हमारा
क्या संतानें ऐसी होती हैं
अपने ही माता को नोंच-खसोट लेती हैं |

हैं दुर्भाग्य बहुत बड़ा
अरबों पुत्रों वाला असहाय खड़ा
सब भारत के बच्चें खुद को कहते हैं
पर मौका मिलते ही लूट-खसोट लेते हैं

वोट पाकर पदवीं पर जो बैठ जाते हैं
अपनी माता को ही वो
विदेशों में गिरबी रख आते हैं
खुद करोड़पति बन जातें हैं कुर्सी पाते ही
अपने भारत को कंगाल बता
विदेशों से भीख तक मांग ले आते हैं |

हैं कितना दुर्दिन बड़ा भारत का अभी
सोने की चिड़ियाँ कहलाता था ये कभी
पर अपनें ही पुत्रों ने क्या हाल कर डाला
कटोरा हाथ में दें भीख तक मँगवा डाला |

ऐसे अरबों-खरबों औलादों से क्या फायदा
जो अपनी ही माता का सर नीचा करे ज्यादा से ज्यादा |
अरबों की जनसंख्या है फिर भी
उम्मीद नहीं हैं भारतमाता को किसी से भी ज्यादा | सविता मिश्रा

तुम कस छुटत जाए ---------------------

तुम कस छुटत जाए
---------------------

जोगिया वस्त्र धारण कर नहि जोगी कोहू बन जाय
कितने पापी पकड़े गये तुम कस छुटत जाय |
...सविता मिश्रा

जख्म देती है दुनिया
===============

जख्म तो देती ही रहती है यह दुनिया
ना यु मन में मलाल कीजिये
जख्मों को यु कुरेद कर जो कोई गया
दिल टूटने का ना उसे अहसास होने दीजिए
टुटा हुआ दिल देख कर आपका जीत हुई उसकी
उसे अपनी इस जीत का ना आभास होने दीजिए |
||सविता मिश्रा ||

नवंबर 19, 2012

~जमीर को खत्म कर हम जी सकेंगे ~





बात दिल पर लगी थी
बिन घाव के ही
व्यंग वाणों से
घायल हुए थे !
सत्य है देर तक सोते थे
पर अब नींद
गायब सी होने लग गयी है
चिंतामग्न रहते
अपनों के साथ-साथ
जो जुड़े थे दिल से वह भी
आखिर क्या हुआ
जो दूरी बना लिए.....!

होती है तकलीफ
जब बिना बात के ही
कोई ठहराता है गलत
आखिर इंसान है हम !
पूछा अपने आप से बहुत देर तक
कि आखिर क्या गलती की हमने
महसूस किया अन्दर से एक आवाज
कि नहीं !
तुम नहीं गलत हो
जमाना ही ख़राब है
भलाई का जमाना कहाँ रहा
और तुम भलाई करने चली हो !
सोचो खूब सोचो पर
दूसरे नहीं !
अपने विषय में
और करो भी सिर्फ
खुद के लिए ही
गैरों के लिए कितना भी करो पर
एक गलतफहमी
सारे किये करायें पर
पानी फेर देंगी
तब सिर्फ अपयश मिलेगा...
सच भी बोलो पर
जरा संभल के !
क्योकि सच कड़वा ही नहीं
बल्कि खतरनाक होता है
सच बोलने पर तुम्हारा
कौन होगा सोचो जरा
झूठ बोलना भी सीखो
जरा मक्खन भी लगाना आना चाहिए
चमचागिरी तो आनी ही आनी चाहिए
वर्ना जिन्दगी का सफ़र मुश्किल ही है
यह गुण आ गए तो देखना
आगे-पीछे भीड़ ही भीड़ होगी
लोग तुम्हे हँसाने की जुगत लगायेंगे
अकेले बैठ यू नहीं तलासोगी खुद को
बस थोड़ा हुनर सीख लो
भीड़ में शामिल होने का
उनके साथ घुल-मिल रहने का
जाहिर है इसके लिए
अपनी सच्चाई आत्मसम्मान को छोड़ना होगा
चापलूसी, मक्कारी, चमचागिरी,
बातो को लागलपेट कर बोलना सीखना होगा
क्या उम्र के इस पड़ाव पर अब सीख सकोगी
यदि हाँ तब तो स्वागत है
और यदि नहीं तो फिर
यूँ ही अकेले रहने की आदत डालो
और खुश रहो अपने आप में ही !
सुन अन्दर की आवाज चिंतित है
करें तो आखिर क्यां करें
शान से खुद मरे या
अपना जमीर ही मार डाले
पर क्या जमीर को खत्म कर हम जी सकेंगे ????????सविता मिश्रा

नवंबर 14, 2012

न बनेगें पांचाली न ही सीता~


सहा बहुत है अब न सहेंगे ,
आँसू बनकर अब न बहेंगे |
किवाड़ की ओट ले अब न सुबकेंगे ,
दीवारों की ओट में अब न दुबकेंगे |
न बनेंगे पांचाली न ही सीता ,
ढालेंगे स्वंय में अब हम गीता |
कष्टों की धारा अपनी ओर न बहने देंगे ,
नारी अबला है पुरुषों को यह नकहने देंगे|
शासित रहे हमेशा लेकिन अब न होंगे,
ईट का जवाब अब हम पत्थर से देंगे|
भूल किया है बहुत मग़र अब न करेंगे,
झुक कर देखा बहुत किन्तु अब न झुकेंगे |
हमारी कमजोरी का कोई न उठाये फायदा ,
हमारी कमजोरी को ताकत बना दे ओ मेरे खुदा |

रिश्ता

   क्यों ऐसा है प्यार भरा रिश्ता भी
मकड़जाल में फंस जाता हैं
शब्दों के कुटिल चाल से
दिल को ही आघात हो जाता हैं  ...सविता

शादी तो आबाद करती है जीवन

शादी बर्बादी होती है
मूरख हैं जो यह कहते है
शादी से तो घर घर होता है
वर्ना चिड़िया घर सा होता है
बच्चों को माँ जैसे संभालती हैं
पत्निया पतियों को संभालती हैं
माँ प्यार से घर को
एक मंदिर बनाती है
पत्निया उस मंदिर को
अपनी जतन से आगे बढाती हैं
माँ बेटे का ब्याह रचा
बहुएँ घर लाती हैं
बहुएँ फिर माँ बनती हैं
यही क्रम चलता जाता है
घर प्यार से स्वर्ग सा रहता है
वर्ना शादी बिन तो
उजड़ा सा होता है जीवन
चारदिवारी में लगता नहीं है मन
ना जाने क्यों
मर्द शादी बर्बादी होती है कहते हैं
शादी तो
आबाद करती है उनका जीवन |
================================
++ सविता मिश्रा ++

मेरा नाता

जिधर देखती हूँ
गम की परछाइयाँ है
मुहब्बत की डगर में
बस नफरत की खाइयाँ है !!

दुःख को ही बना लिया है
हमने अपना
खुशी तो लगती है
अब भयानक कोई सपना

दुःख से ही है अब
मेरा नाता
खुशी के बदले
गम ही है हमें भाता

दुखी मिलता है
जब कोई अदना
रिश्ता है कोई
लगता है अपना

गम को कहो
कैसे छोड़ दूँ !
किस्मत को भला
कैसे मोड़ दूँ!

किस्मत व गम
जब दोनों ही है पर्याय
तो फिर क्यों करुँ
मैं हाय -हाय

सुख ने तो कुछ पल ही
पकड़ा था हाथ
गम ही ने तो निभाया है
सदा मेरा साथ |

+++सविता मिश्रा 'अक्षजा' +++

~~हुनर की कीमत~~

 झुग्गी झोपड़ियो की जगह
काश हम झुग्गीवासियों के लिए
एक कमरे का ही सही
घर बना पातें |
काश सभी  बेसहारों के जीवन में
हम  सहारा बन पातें

  हरदम मुस्करातें हुए चेहरे को
अपने कैमरे में उतार पातें |
पर अफ़सोस!!
ह तो कुछ पल की हंसी थी
जो हमें अपने सामने पा चेहरे पर जगी थी|
वरना अँधेरे में तो जीने की आदत 
है न्हें
छोटी-छोटी खुशियों में ख़ुशी ढूढ़ ही लेते
हैं|

हुनर बाज हैं  !!
अपना हुनर बेचते
हैं!
पर हुनर का
खरीदार कहाँ  है यहाँ
सड़को पर हुनर बेचने वाला तो
दो जून की रोटी
को भी तरसता है
और
हुनर शोरूमों में  अनमोल हो बिकता है|

हुनर की कीमत यदि नकी भी लगने लगे
तो हम न्हें दया दृष्टि से नहीं बल्कि
वो हमें देखते नजर आयेंगे और
एक कमरे का घर छोड़ों
महलों में हम न्हें पायेंगे |
पर अफ़सोस उनकी कलाकृतियाँ
सड़को पर धूल चाटती हैं
या फिर  कौड़ियों के दाम बिकती  हैं
और वहीं,  उन्ही की ही कलाकृतियाँ
शोरूमों  या माँल  में अनमोल हो
हाथोंहाथ बिक जाती हैं
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अपने ही हुनर को अनमोल बिकते देख
खुद को  ठगा हुआ सा पातें हैं
फिर भी हुनर बाज हैं जो
अपने हुनर और मेहनत का खाते हैं |
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......सविता मिश्रा